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पहचान. / केशव
Kavita Kosh से
इस तरह तुम कहीं नहीं पहुँचोगे
खुद से भागकर
खुद में उगना
फलना
अंश-अंश फैलकर
धूप की तरह
बहना
बहते चले जाना
जो तुम्हारा है
तुम देखोगे
बहीं तुम्हें खोकर भी
पा रहा है बार-बार
सुना रहा है
कहीं बहुत गहरी उठती हुई
लहर का संगीत
जो तुम्हारा नहीं
तुम पाओगे
समुद्र में गिरती हुई वर्षा की तरह
आत्मसात हो तुमनें
बहने लगेगा साथ-साथ
अपनी पहचान से अलग
तुम्हारा होने के लिए
तब न तुम
अंत से भागोगे न आदि से
और न पाओगे
दोनों की अलग-अलग पहचान में
गड्डमड्ड
अपनी पहचान