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पहला और आख़िरी / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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वह पहली घड़ी थी
जब मैंने पूछा था :
तुम कौन हो ?

और मेरा सवाल
गूँजते हुए
जवाब बन गया :

मैं तुम हूँ !

बाक़ी ज़िन्दगी गुज़र गई
तुम और मैं के इस खेल में ।