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पहिला सगुनवाँ तिल-चाउर हे बाबू, तब कए डटारेबो पान / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पहिला सगुनवाँ<ref>सगुन</ref> तिल-चाउर हे बाबू, तब कए डटारेबो<ref>डाँठ। डंटी से युक्त पान</ref> पान।
लगनियाँ<ref>लग्न</ref> अइले उताहुल<ref>आकुल, उतावलेपन में जल्दीबाजी करने के लिए</ref> सगुनवाँ भला हम पाएब हे॥1॥
ससुर बोलएबो कवन<ref>किस</ref> दुलहा हो बाबू।
लगनियाँ अइले उताहुल, सगुनवाँ भला हम पाएब हे॥2॥
कइसे<ref>किस तरह</ref> में आएब ससुर बढ़इता<ref>श्रेष्ठ। आदरसूचक, बड़ा</ref> हे, ससुर राउर<ref>आपकी</ref> नदिया झिलमिल पानी।
लगनियाँ अइले उताहुल, सगुनवाँ भला हम पाएब हे॥3॥
काल्ह<ref>आने वाला दिन, कल</ref> कटएबो चन्नन गछिया हे बाबू, परसों<ref>तीसरा दिन। परश्व</ref> बनएबो डेंगी नाव,
ताहि<ref>उसी पर</ref> रे चढ़ि आवहु<ref>आओ</ref> हे।
सगुनियाँ अइले उताहुल, सगुनवाँ भला हम पाएब हे॥4॥
धीरे खेवऽ<ref>नदी पार करने के लिए नाव के डाँड़ों को चलाओ, जिससे नाव चले।</ref> मधुरे खेवऽ, मलहवा भइया हे, बाबू, भिजले<ref>भीग रहा है</ref> कवन दुलहा सिर पगिया।
कवन सुगइ<ref>सुग्गी, शुकी। यहाँ ‘सुगइ’ शब्द उस कन्या के लिए आया है, जिसे बड़े प्यार-दुलार से माता-पिता ने पाला है।</ref> सिर सेनुर<ref>सिन्दूर</ref> नयनवाँ भरी काजर।
लगनियाँ अइले उताहुल, सगुनवाँ भला हम पाएब हे॥5॥
कथिय<ref>किस चीज से या कैसे</ref> सुखयबऽ<ref>मगही में इसके लिए ‘कौची’ शब्द का प्रयोग होता है, जिसर्का अाि ‘कौन चीज’ होता है</ref> सिर सेनुर, नयनवा भरी काजर।
लगनियाँ अइले उताहुल, सगुनवाँ भला हम पाएब हे॥6॥
रउदे<ref>धूप में</ref> सुखाएब झिलमिल पगिया हे बाबू।
छँहिरे<ref>छाया में</ref> सुखाएब सिर सेनुर, नयनवाँ भरी काजर।
लगनियाँ अइले उताहुल, सगुनवाँ भला हम पाएब हे॥7॥

शब्दार्थ
<references/>