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पावस रितु असरेस रात / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'
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पावस रितु असरेस रात घनघोर घटा नभमें छेलै
गरजै बादल बरसे झमाझम पिया परदेशी की याद ऐलै
छप्पर चूवै कपड़ा भींजै, छतिया में रही-रही टिस उठलै
घोॅर-बोॅर बैसाखें करै छै तोरा हमरोॅ बतिया नै भैलै
तोहें तेॅ सुख भोग करै छोॅ, फिल्मी शहर बंबई गेलहोॅ
हम्में अभागिन कोॅर जोरै छौं, तोंय हमरा वहाँ लेॅ जैहोॅ।