पुरुष का अभिमान / ईगर सीद / अनिल जनविजय
प्राचीनकाल से ही पुरुष ख़ुद को दिखाता है बुद्धिमान
होता है उसमें अत्यन्त विशाल अजगर-सा अभिमान ।
गोल घेरे बनाकर, ताक़त दिखाकर, बनता है सत्ताधीश
परिवार की ख़ुशी का जैसे सिर्फ़ उसे ही रहता है भान ।
ख़ुद को मानता है वह आदर्श परिवार के लिए
बढ़ती चली जाती हैं उसमें परतें अभिमान की ।
पर पुरुष जो सोचता है साहसी, दिलेर ढंग से
उसमें होती नहीं, कोई ज़िद, दिखावे की, शान की।
मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी में पढ़िए
Игорь Сид
Корень удá
Многомудрый и древний, как корень удá,
у любого мужчины внутри есть удав.
Его кольца несут волю к власти
и скрепляют семейное счастье.
Тот, кто мыслит себя образцовым самцом,
нарастает внутри как бы лишним кольцом.
А кто мыслит особенно бравым,
обзаводится внешним удавом.