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प्रीतम आए प्रभात प्रिया / मतिराम

प्रीतम आए प्रभात प्रिया, मुसक्याय उठी दृग सों दृग जोरै।
आगे ह्वै आदर कै 'मतिराम', कहै मृदु बैन सुधा रस बोरैं।।
ऐसे सयान सुभायन हीं सों, मिली मनभावन सो मन मोरै।
मान गो जानि सुजान तवै, अंगिया की तनी न छुटी जब छोरै।।


मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री सुरेश सलिल के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।