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प्रेम रंग / अरविन्द भारती
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बस एक बूंद गिरी
खाई और गहरा गई
पत्तियाँ झड़ने लगी
सूरज सिर पर
ताण्डव करने लगा
आकाश में गिद्धों का पहरा
घौंसलों में छाई वीरानी
सूख कर
जो काला पड़ गया
वो प्रेम रंग था।