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रोज़ सूरज
समुन्दर में जा गिरता है
रोज़ चन्द्रमा
रात से मिलता है
रोज़ पखेरू
पंख फड़फड़ाता हुआ
घर को लौटता है !
एक शख़्स
अभी भी
दफ़्तर की
फ़ाइलों से जूझता
भूल गया घर का रास्ता ।
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रोज़ सूरज
समुन्दर में जा गिरता है
रोज़ चन्द्रमा
रात से मिलता है
रोज़ पखेरू
पंख फड़फड़ाता हुआ
घर को लौटता है !
एक शख़्स
अभी भी
दफ़्तर की
फ़ाइलों से जूझता
भूल गया घर का रास्ता ।