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फिर-फिर वही धुन लेकर यों किसने पुकारा है! / गुलाब खंडेलवाल


फिर-फिर वही धुन लेकर यों किसने पुकारा है!
लगता है उन आँखों में रुकने का इशारा है

यादें ही ग़नीमत हैं इन प्यार की राहों में
बिछुड़े हुए साथी से मिलना न दुबारा है

हम डाँड़ चलाते हैं, तुम पार लगा देना
यह काम हमारा था, वह काम तुम्हारा है

क्या प्यार को समझें हम, क्या रूप को देखें हम
एक जान हमारी है, एक जान से प्यारा है

उलझा था कभी इसमें आँचल तो, गुलाब, उनका
अब डाल का काँटा ही जीने का सहारा है