फूल - 2 / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
किसलिए दिया सरग को छोड़।
हो गयी कैसे ऐसी भूल।
कह रहे हो क्या मुँह को खोल।
क्या बता दोगे हम को फूल।1।
रंग ला दिखलाते हो रंग।
दिलों को ले लेते हो मोल।
खींच कर जी को अपनी ओर।
कौन सा भेद रहे हो खोल।2।
मुसकरा जतलाते हो प्यार।
चुप सदा रह करते हो बात।
किसलिए कर के किस का मोह।
महँकते रहते हो दिन रात।3।
हुआ है किसका इतना मान।
मची कब किसकी इतनी धूम।
भाँवरें भर जाता है भौंर।
आ हवा मुँह लेती है चूम।4।
हो बड़े अलबेले अनमोल।
डालियों की गोदी के लाल।
सदा लेते हो आँखें छीन।
न जाने कैसा जादू डाल।5।
सुनहला पहनाता है ताज।
तुझे उगता सूरज कर प्यार।
वार देती है तुझ पर ओस।
निज गले का मोती का हार।6।
तू न होता तो खिल कर कौन।
बुझाता कितनों की रस प्यास।
बड़ी रंगीन साड़ियाँ पैन्ह।
तितलियाँ आतीं किसके पास।7।
फबीला तुम सा मिला न और।
रसीला याँ है ऐसा कौन।
खिल सका तुम सा कोई कहाँ।
हँस सका है तुम जैसा कौन।8।
बुरों का सब दिन करके साथ।
सका अपने को कौन सँभाल।
तुम्हीं काँटों में करके वास।
खिले ही मिलते हो सब काल।9।
प्यार कर कोई लेवे चूम।
दुखों में कोई देवे डाल।
भूल कर अपना सारा रंज।
कर सके सबको तुम्हीं निहाल।10।