बगिया में उतरे बसन्त ने
छककर चाँद पिया ।
रात फेरती जिव्हा अपने
कत्थई होंठों पर
गुदना गुदवा रही चान्दनी
गोरी बाँहों पर
झुक-झुककर महके कनेर ने
एकालाप किया ।
पतझर में जो सूखे पत्ते थे
परित्यक्त हुए
ख़ुशबूदार बैंगनी फूलों में
अभिव्यक्त हुए
प्रोषित पतिका के हाथों में
जलता रहा दिया ।