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बरसात-2 / जगदीश चतुर्वेदी
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तेज़ पानी में
कुछ करने का मन नहीं होता
तबियत होती है
रजाई में क़ैद होकर
टीनों पर गिरती बूँदों का अहसास किया जाए
या सारे कमरे के परदे गिराकर
लाइट जला,
अलबम में लगे तुम्हारे चित्रों को
प्यार किया जाए !