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बलात्कार / सरिता महाबलेश्वर सैल

ये शब्द फिर समाज में
बार-बार गुंजा ही क्यों?
आँखों में तैरती कुत्सित वासना और
छिन्न-भिन्न नारी की काया ही क्यों?

एक पल को रुको, सोचो
तार-तार होता क्या
सिर्फ शरीर
या फिर होती है
छलनी आत्मा भी?

क्या शर्मसार होती है
वह जननी भी
जिसके गर्भ में अंकुरित हुआ
हैवान
पालकर विषैले अंकुर
आहत होती है
मातृत्व की संवेदना भी?

या फिर ज़िम्मेदार है
समाज के ठेकेदार
जिन्होंने नारी को मात्र
उपभोग की वस्तु माना
और यही विष के बीज
पीढ़ी दर पीढ़ी बोया?

जब भी गूंजता है
नारी का अभिसार
इतिहास के पन्नों में भी नारी का सम्मान
होता है तार-तार
एक नहीं हजारों वसुंधराओं का
आँचल होता है शर्मसार।