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बसंती-बयार / बिंदु कुमारी
Kavita Kosh से
बसंती हवा नेॅ
गुद गुदावै छै तन
महुआ आरो आममंजरी रोॅ सुगन्ध
फैलावै छै खुशबू चहुँ ओर।
फागुनी हवा नें तन-मन में दै फुरती
रातरानी, बेली आरो रजनीगंधा नेॅ भी
वहेॅ रं खुशबू बिखेरै छै जेना
महुआ आरेा आम के मंजरी।
सबरोॅ अलसैलोॅ बदन मेॅ
लानै छै ताजगी।
प्रकृर्ति सुहानोॅ लागै छै
जबेॅ गैया डिकरै छै, बछडुआ उछलै छै।
बसंत रोॅ विहानकोॅ बसंती हवा
चहुँ ओर फैलै छै, सुगन्ध बिखेरनेॅ।
पराशोॅ रोॅ लालटेस फूल दिखाय छै
उगतेॅ हुवेॅ सुरूजोॅ जुंगा।
केकरोॅ नै मोॅन गद्गद होतै
ई बसंती हवा मेॅ,
खेतोॅ मेॅ पीरोॅ-पीरोॅ सरसोॅ रोॅ फूल
तीसी, खेसाड़ी आरो बूट।
हरियैलोॅ धरती, गहूँमोॅ रोॅ बाली।
बसंत रोॅ ई झाँकी
केकरा नै आकर्षित करतै
बसंत रोॅ बसंती रंग सब्भै पर चढ़ै छै।