बादल आरो बुतरु / अमरेन्द्र
नद्दी-नद्दी पानी दे
नै तेॅ मछली रानी दे ।
कहाँ सेॅ देभौ पानी केॅ
चमचम मछली रानी केॅ
मेघ नै आबेॅ आबै छै
पानी केॅ बरसाबै छै
बादल केॅ जाय विनती करµ
नद्दी केॅ पानी सेॅ भर ।
बादल-बादल पानी दे
नै तेॅ बिजली रानी दे ।
कहाँ सेॅ देभौ पानी केॅ
चमचम बिजली रानी केॅ
जंगल नै तेॅ छाया दै
खड़ा हुवै लेॅ पाया दै
गरम हवा ठंडैतै नै
बादल भी तेॅ ऐतै नै ।
जंगल मेघ केॅ छाया दैं
खड़ा हुवै लेॅ पाया दैं ।
कहाँ सें देबौ छाया केॅ
खड़ा हुवै लेॅ पाया केॅ
जंगल तेॅ सब कटी गेलौ
करखाना में बँटी गेलौ
गाछ लगाबें पहिलें जो
सब लोगोॅ सें कहलेॅ जो ।
बुतरु चललै गामे-गाम
गाछ लगैनें ठामें-ठाम
देखी लोगोॅ जुटी गेलै
धरती वन सेॅ पटी गेलै
जंगल-जंगल घूमी केॅ
ऐलै बादल झूमी केॅ
आरो नद्दी बहलै सब
सुख आबै दुख सहलै सब ।