बादल और पहाड़ों के बीच रहकर 
मैंने कभी तुम्हें बादल बनाया 
कभी में पहाड़ बनी
जब तुम्हें एक बादल के रूप में देखा 
तो बरस रहे थे तुम गरज़ कर 
पहाड़ पे लगातार 
और जब मैं बादल बनी 
तो पहाड़ के काँधे पे सहारा ले 
उसे गले लगाया 
उसे अपनेपन का अहसास कराया
दोंनो ही सूरत में
मैंने तुम्हें गरजते बरसते 
पत्थर मन ही पाया...