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बीता हुआ कल / रामधारी सिंह "दिनकर"

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युग मरे, सदियाँ गईं मर, किन्तु, ओ बीते हुए कल!
क्या हुआ तुमको कि तुम अब भी नहीं मरते?
घेरते हर रोज क्यों मुझको मलिन अपने क्षितिज से?
नित्य सुख को आँसुओं से सिक्त क्यों करते?