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बेरी बेरी बरजौ मोर बाबा, जेठ जानु करिहो बियाह हे / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बेटी अपने पिता से वर्षा ऋतु में विवाह नहीं करने का आग्रह करती है; क्योंकि उस समय बराती ही नहीं, वरन् दुलहा भी वर्षा में भींज जाते हें। फिर, वह कुएँ खुदवाने और आम का पेड़ लगवाने की प्रार्थना करती है; जिससे बराती पानी पी सकें और छाया में रह सकें। ऐसा करने से पिता की प्रतिष्ठा बढ़ेगी। बेटी जब लटें साफ करके शृंगार करने लगती है, तब वह अपने लिए गोकुल के कृष्ण कन्हैया के समान पति पाने की इच्छा अपने पिता से प्रकट करती है।

बेरी बेरी<ref>बार-बार</ref> बरजौं मोर बाबा, जेठ<ref>जेठ का महीना</ref> जानु करिहो बियाह हे।
आजिम भींजत बाबा जाजिम भींजत, भींजत घोड़ा के लगाम हे॥1॥
जीरबा<ref>जीरा के समान सुगंधित; दुबली-पतली और छोटी</ref> ऐसन बेठी लोक बेद<ref>लोग सब</ref> देखल, पंडित ऐसन जमाय हे।
आजिम<ref>‘जाजिम’ का अनुरणानात्मक प्रयोग</ref> देबौ बेटी जाजिम देबौ, देबौ घोड़ा के लगाम हे॥2॥
कुइयाँ खुनइहऽ<ref>खुदवाना</ref> बाबा आम गाछ लगइहऽ, आयत लोक बरियात हे।
पनियाँ पिएत बाबा छाहरी<ref>छाया</ref> भै बेठत, बाढ़त नाम तोहार हे॥3॥
सिसोही<ref>कंघी से बालों को अच्छी तरह साफ करना</ref> सिसोही बेटी लट झाड़ल, भै गेल बाबा भिर ठाढ़ हे।
एक बचन मोरा सुनहो हो बाबा, खोजिहऽ सुनर जमाय हे।
जैसन गोखुला<ref>गोकुल</ref> के किसुन कन्हाई, ओइसन खोजिहऽ जमाय हे॥4॥

शब्दार्थ
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