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बोगेन बेलिया / महेश सन्तोषी
Kavita Kosh से
उसके अंगों का रंग चुरा लाये,
तो तन की खुशी न छुपा पाये,
बोगन बलिया।
कहाँ से देख लिया, किसका बदन देख लिया?
बाँहों में भर लाये, उठा लाये,
बोगन बलिया।
ये बदन बोलते-से, अनंग ओस-से सरसे,
ऐसे ताजे़ कि जैसे ताज़ी बोगन बेलिया;
अंग लगे न लगे, हमें तो फूले अंगों से लगे,
सारे के सारे बोगन बलिया!
कहाँ से देख लिया, किसा बदन देख लिया?
बाँहों में भर लाये, उठा लाये,
बोगन बलिया।
रंगों से बनती हैं, देहों के फूलों से बनती हैं
प्यार की देहरियों की रंगोलियाँ,
शायद इसीलिए बहारों का कोई बदन नहीं होता
होता तो बाँहों में बँध जाते, सारे फूल, सारी कलियाँ।
कहाँ से देख लिया, किसका बदन देख लिया?
बाँहों में भर लाये, उठा लाये,
बोगन बलिया।