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भकजोगनी / कुंदन अमिताभ
Kavita Kosh से
जूगनू कहऽ
चाहे भकजोगनी
हरदम जुगजुगाबै छै
भक सें भकभकाबै छै
जंगल झाड़ी में
घऽर आरो बाड़ी में
जन-मन टटोलै छै
सम्हरी-सम्हरी बोलै छै
जोहै छऽ बाट
भोर होय केरऽ
छोड़ऽ इ धात
नाश होय केरऽ
जोधा बनी केॅ आबऽ
जोश भरी लाबऽ
जौरऽ होय केॅ आबऽ
गुज-गुज अन्हरिया में
सूरज नया उगाबऽ।