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भारत शक उन्नीस सौ तेईस : पांच कविताएं / शहंशाह आलम

एक

सच में बिलकुल सच में
यहां आधी रात के बाद आत्माएं भटकती हैं
बेचैन अपने को प्रकाशित करती हुईं

हत्या के बाद आत्माएं कहावतों और दंतकथाओं में
अप्रत्याशित जीवित हो उठती हैं लेकिन
आधी रात के बाद भटकती हुई ये आत्माएं
पुनर्जन्म नहीं चाहतीं पृथ्वी नहीं चाहतीं
कहावतों और दंतकथाओं तक में नहीं

इसलिए मैं, भारत का आम नागरिक
आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष 2
विक्रम 2058 को घोषित करता हूं
मैं अयोध्या में ही पैदा हुआ
मैं अयोध्या में ही मारा गया

अब मैं भी शामिल हुआ अप्रत्याशित
हत्या के लोकगीतों से गुज़रता हुआ
आधी रात के बाद भटकती हुई आत्माओं में
(इस पंक्ति के लिए कथाकार असग़र वजाहत का आभार)

दो

उन्होंने कथा सुनाई गुजरात की
गुजरात के राजा की प्रजा की
हत्यारे के पक्ष में खड़े न्यायाधीश की
उनके बूचड़ख़ाने की उनके पुरातन की
इनके और उनके मनुष्यता को नष्ट करने वाले मज़हब की
उनके पुरस्कृत नाटक की और दर्शकगण की
कथा सुनाई उन्होंने विस्तृत

उन्होंने किसी कुशल गाइड की तरह
हमें चकित-विस्मित करते हुए बताया कि
यहां पर पूरी तरह बसी बस्ती हुआ करती थी कभी
यहां सुबहें और शामें हुआ करती थीं अनोखी
यहां पर बच्चे क्रिकेट खेलते थे
युवा लड़के माउथऑर्गन बजाते थे
युवतम लड़कियां नायिका बनने का उपक्रम करती थीं निरापद

यहां उस कोने में बढ़ई औज़ार रखते थे अपने
वहां उस ताखे पर दर्जी अपनी सूई और धागे

यहां पर शब्द बजते थे निरंतर
गाई जाती थीं लिपियां गीत की तरह

क्षितिज के क्षितिज अनन्त के अनन्त
तर्क के तर्क विचार के विचार वितान के वितान
कुछ भी तो दिखाई नहीं देते यहां अब

हे सूत्रधार, आप सच से भी सच बोलते हैं

तीन

कुछ चालीस-पैंतालीस पार औरतों ने
सप्रेम भेंट किया कुछ पुरुषों को
एक चर्चित पत्रिका का
यौन विशेषांक

क्षमा करें कथानायक, क्षमा करें
उन स्त्रियों ने सार्थक किया
आपके पौरुष को
इस नपुंसक समय में

चार

महामात्य का बयान राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय
चैनेलों पर दिखाया और सुनाया गया

उनके बयान के कई अर्थ थे
अर्थ के भी अर्थ थे

महामात्य बोलते और बोलते हुए
उनके होंठ क्षणों और मिनटों बन्द हो जाते

जबकि कई मारे गए हत्यारे के हाथों
चश्मदीद गवाह थे तो महामात्य थे

जबकि महामात्य के बयान के बाद फिर
चाकू घुसेड़ा गया मेरे शरीर में
मेरी हत्या के निमित्त

पांच

पहली दफा सुना कि मिसरी खाकर
उनका मुंह कड़वा हो गया एकदम से

पहली दफा सुना कि वो बुद्ध की तरह मुस्कुराए
और इस घर की बची हुई चीज़ें सड़ गईं

पहली दफा सुना कि सुबह की प्रार्थना उन्होंने की
चिडि़यां पृथ्वी अनन्त क्षितिज सब भूल गईं

पहली दफा सुना कि लड़कियों को उन्होंने छुआ
लड़कियों से उनके पहाड़ दरख़्त कश्ती
उनकी शायरी उनके शब्द उनकी लिपियां
और उनसे उनका प्रेम खो गया

पहली दफा सुना कि उन्होंने ‘ईश्वर’ शब्द का
किसी मंत्र की तरह जाप किया
फिर वो ईश्वर की पीठ से उतरे
फिर उन्होंने सिर्फ़ एक ही हत्या की
सिर्फ़ एक का घर जलाया।