भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भालू जी ने बात कही / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'
Kavita Kosh से
बहुत दिनों के बाद मदारी आया है
भालू, बंदर और बंदरिया लाया है
बंदर करे सलाम, बंदरिया नाच रही
भालू जी ने हाथ जोड़कर बात कही
बरसों बाद इस शहर में हम आए हैं।
इतना बदला रूप देख चकराए हैं
कई-कई मंजिल वाले घर देख रहे
लोग जा रहे नीचे-ऊपर देख रहे
नीचे से चढ़कर छत तक जानेवाले
हो जाते होंगे मेरे जैसे काले।
ऊपर से सीढ़ियाँ उतरकर जो आते
वे भी थके-थके-से साफ नजर आते
जब हम नीचे अपना खेल दिखाएँगे
बोलो ऊपर वाले कैसे आएँगे
खेल हो रहा कौन उन्हें बतलाएगा !
ऊपर से क्या नज़र उन्हे कुछ आएगा
ऊपर वाले नीचे नहीँ देखते हैं
बड़े लोग छोटों को कहीं देखते हैं
इस कारण से अब न यहाँ आना होगा
है आखिरी सलाम, हमें जाना होगा।