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भूलने के विरुद्ध / अग्निशेखर
Kavita Kosh से
कहा तुमने
यों तो साफ़ थीं दीवारें
अलबत्ता दो लाचार हाथों के
फिसले हुए निशान थे
नीचे ज़मीन तक सरक आये
कोई नहीं था वहाँ
दीवार के सामने
सिर्फ थी
गोली चलने की अदीख घटना
और थी खड़ी
भूल जाने के विरुद्ध
चुप दीवार
कहा तुमने
यहीं से शुरू होती है
तुम्हारी कविता