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मरातिब दुनियाँ महज़ बेसबात है / नज़ीर अकबराबादी

गर बादशाह होकर अमल मुल्को हुआ तो क्या हुआ?
दो दिन का नरसिंगा बजा, भौं-भौं हुआ तो क्या हुआ?
गुल शोर मुल्को माल का कोसों हुआ, तो क्या हुआ?
या हो फ़क़ीर आज़ाद के रंगूं हुआ तो क्या हुआ?
गर यूं हुआ तो क्या हुआ? और वूं हुआ तो क्या हुआ?॥1॥

दो दिन तो यह चर्चा रहा घोड़ा मिला हाथी मिला।
बैठा अगर हौदे ऊपर, या पालकी में जा चढ़ा।
आगे को नक़्कारे, निशां, पीछे को फ़ौजों का परा।
देखा तो फिर एक आन में, हाथी न घोड़ा ना गधा।
गर यूं हुआ तो क्या हुआ? और वूं हुआ तो क्या हुआ॥2॥

या दौलतो इक़बाल है, पहना ज़री और बादला।
मसनद सुनहरी दी बिठा, कमख़ाब के तकिये लगा।
आखि़र न वह दौलत रही, न आप ने वह घर रहा।
मसनद कहीं जाती रही, तकिया कहीं फिरता फिरा।
गर यूं हुआ तो क्या हुआ? और वूं हुआ तो क्या हुआ॥3॥

या इश्रतों के ठाठ थे और ऐश के असवाब थे।
साकी, सुराही, गुलबदन, जामे शराबे नाब थे।
या बेकसी के दर्द से, बेहाल थे बेताब थे।
आखि़र जो देखा दोस्तों सब कुछ ख़यालों ख़्वाब थे।
गर यूं हुआ तो क्या हुआ? और वूं हुआ तो क्या हुआ॥4॥

था एक दिन वह धूम का, निकले था जब असवार हो।
हर दम पुकारे था नक़ीब<ref>वह व्यक्ति जो किसी राजा महाराजा की सवारी के समय आगे आवाज़ लगाता चलता है, चौबदार।</ref> आगे बढ़ो पीछे रहो।
या एक दिन देखा उसे, तनहा पड़ा फिरता है वह।
बस क्या खु़शी, क्या ना खुशी, यक्सां हैं सब ऐ दोस्तो।
गर यूं हुआ तो क्या हुआ? और वूं हुआ तो क्या हुआ॥5॥

जब हश्मतों की शान में करता था क्या-क्या शेखियां।
हर दम तकब्बुर<ref>घमंड</ref> के सुख़न, हर आन में मग़रूरियां<ref>घमंड</ref>।
और उड़ गई दौलत, यह फिर असबाब के तख़्ते कहां।
आकर फ़ना हाज़िर हुई, सब मिट गए नामों निशां।
गर यूं हुआ तो क्या हुआ? और वूं हुआ तो क्या हुआ॥6॥

या नेमतें खाता रहा, दौलत के दस्तख़्वान पर।
मेवे, मिठाई वा मजे, हल्वाये तर शीरो शकर।
या बांध झोली भीख की, टुकड़ों के ऊपर धर नज़र।
होकर गदा फिरने लगा टुकड़ों की ख़ातिर दरबदर।
गर यूं हुआ तो क्या हुआ? और वूं हुआ तो क्या हुआ॥7॥

या दौलतों का सामने, आकर था यक दरिया बहा।
लेकर जमीं ता आस्मां, दौलत में फिरता था पड़ा।
या होके मुफ़्लिस बेनवा, फिरता है दाने मांगता।
जब आ गई सर पर अजल, एक दम में सब कुछ मिट गया।
गर यूं हुआ तो क्या हुआ? और वूं हुआ तो क्या हुआ॥8॥

गर नाज़ो नेमत में रहा, यानी कि वह ज़रदार<ref>दौलतमंद</ref> था।
या मुफ़्लिसी के हाथ से, मोहताज हो दर-दर फिरा।
जब वक़्त चलने का हुआ, न यह रहा, न वह रहा।
आया था जिस अह्बाल से, वैसा ही आखि़र चल बसा।
गर यूं हुआ तो क्या हुआ? और वूं हुआ तो क्या हुआ॥9॥

गर एक मुसीबत में रहा और दूसरा दिलशाद है।
वां ऐश इश्रतके मजे, यां नालओ<ref>आह भरना</ref> फर्याद है।
या लज़्ज़तें<ref>मज़ा</ref> या राहतें, या जुल्म या बेदाद<ref>असहयोग</ref> है।
कुछ रह नहीं जाता, मियां आखि़र को सब बरबाद हैं।
गर यूं हुआ तो क्या हुआ? और वूं हुआ तो क्या हुआ॥10॥

जो इश्रतें आकर मिलें तो वह भी कर जाना मियां।
जो दर्द दुःख आकर पड़ें, तो वह भी भर जाना मियां।
या सुख में या दुख में, ग़रज यां से गुज़र जाना मियां।
यां चार दिन की ज़िन्दगी, आखि़र को मर जाना मियां।
गर यूं हुआ तो क्या हुआ? और वूं हुआ तो क्या हुआ॥11॥

अब देख किसको शाद हो और किस पे आंखें नम करे।
यह दिल बिचारा एक है, किस-किसका अब मातम करे।
या दिल को रोवे बैठकर या दर्द दुख को कम करे।
यां का यही तूफान है अब किसकी जूती ग़म करे।
गर यूं हुआ तो क्या हुआ? और वूं हुआ तो क्या हुआ॥12॥

गर तू ‘नज़ीर’ अब मर्द है हर हाल में भी शाद हो।
दस्तार में भी हो खुशी, रूमाल में भी शाद हो।
आज़ादगी भी देख ले, जंजाल में भी शाद हो।
गर यूं हुआ तो क्या हुआ? और वूं हुआ तो क्या हुआ॥13॥

शब्दार्थ
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