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मस्ताई सी म्हारे गाम पै बदली मिह बरसागी रै / विरेन सांवङिया

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मस्ताई सी म्हारे गाम पै बदली मिह बरसागी रै।
काच्चा करगी जी मेरा उस याद बैरण की आगी रै॥

बुआ के घर आरी थी वा भले सुभा की मरजाणी।
मैं निरा गाम का उत मलंग वा पिपल नै दे थी पाणी।
किमे याद जिगर मै उसकी थी किमे माट्टी महक उठागी रै।
काच्चा करगी जी मेरा उस याद बैरण की आगी रै॥

मैं भैंस न्वाह कै लाया करता जद गौसे थापदी पावै थी।
कदे कदे तै बग्गी मै बैरण मेरे सेथी जावै थी।
लाई आग बिघ्न की बरखा नै जो याद पुराणी जागी रै।
काच्चा करगी जी मेरा उस याद बैरण की आगी रै॥

शीत, दूध का ले ले ओडा मै उसके घर मै जाया करता।
मनै देख वा फूल सी खील्दी मै दूणी दूणी शरमाया करता।
जोहङी आले कूवे उपर वा कई बै हस बतलागी रै।
काच्चा करगी जी मेरा उस याद बैरण की आगी रै॥

पढ लिख अपणे गाम गूचगी वा मेरी हाण दिवाणी सी।
पन्ना बैरगी छपकै रहगी सांवङिया कि प्रेम कहाणी सी।
आज फेर आया उस फोन जलि का या बरखा प्रेम जगागी रै।
काच्चा करगी जी मेरा उस याद बैरण की आगी रै॥