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मुक्तक-89 / रंजना वर्मा

प्यार की खुशबू भरे मौसम सुहाने के लिये
शुद्ध हो जीवन चलें मिल कर नहाने के लिये।
है प्रदूषण बढ़ गया तन मन कलंकित हो रहा
यत्न हो सद्भाव की गंगा बहाने के लिये।।

आज सीमा हमारी सुरक्षित नहीं
यत्न करते रहे पर है रक्षित नहीं।
रोज़ ही मर रहे वीर सैनिक मगर
शत्रु सेना हुई मृत्युभक्षित नहीं।।

हो नदी गहरी किनारा ढूंढ़ लेना
साथ जो भी हो तुम्हारा ढूंढ़ लेना।
आ पड़े मझधार लहरें हों डुबोतीं
एक तिनके का सहारा ढूंढ़ लेना।।

इन अँधेरों को मिटाने के लिये
रात में दीपक जलाने के लिये।
चाहिये करना सभी को कुछ न कुछ
काम दुनियाँ का चलाने के लिये।।

धूप ने जल को उड़ा बादल किया
बाँध पग में बिजलियाँ पायल किया।
साँवरे से कुछ लगन ऐसी लगी
प्यार ने जैसे हृदय पागल किया।।