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मुमकिन है कि कुहसार चले या गल जाये / रमेश तन्हा

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मुमकिन है कि कुहसार चले या गल जाये
अग़लब है कि सूरज से समंदर जल जाये
लेकिन ये तो मुमकिन ही नहीं हो सकता
आदत से कभी अपनी कमीना टल जाये।