मेरी आँखें / गोविन्द माथुर
मैं अपनी आँखों को
कहीं सुरक्षित रख देना चाहता हूँ
जब अन्धेरा ही देखना है
तो आँखों की उपयोगिता भी क्या है
मेरी आँखे भिन्नता लिए हैं
धृतराष्ट्र की आँखो से
मैं जन्मांध नही हूँ
अब अन्धा होना चाहता हूँ
इससे पहले कि
मेरी आँखे निकाल ली जाएँ
कुणाल की तरह
मैं अपनी आँखों को
कहीं सुरक्षित रख देना चाहता हूँ
यों भी सफल व्यक्ति वही है
जो सब कुछ देखता है
आँखे मूंद कर और
तेज़ी से गुज़र जाता है
सब कुछ रौंदते हुए
जैसे कि बुलडोजर
गुज़र जाता है झोंपडियों पर से
शायद यह एक ज़रूरत भी है
एक विकासशील देश की
जब हमें एक आवाज़ का ही
सर्मथन करना है तो
इसमें आँखों की ज़रूरत भी क्या है
आँखें होते हुए भी जब हमें
अंधे की भूमिका निबाहनी है तो
सफल अभिनय के लिए
अंधा होना ही अच्छा है।
फिर भी एक चालाकी
बरतना उचित रहेगा
हो सकता है
आज नही तो कल
देखने की ज़रूरत पड़ जाए
इसलिए किसी नेत्र-शिविर में
आँखे खो देने से अच्छा है
मैं अपनी आँखों को कहीं
सुरक्षित रख दूँ अन्धेरे में