हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
मेरी सांझी के औरे धोरै फूल रही कव्वाई
भान मैं तन्नै बूझूं संझा कैं तेरे भाई
मेरे पांच पचास भतीजे नौ दस भाई
भान कैयां का ब्याह रचाया कितने की सगाई
पांचा का तो ब्याह रचाया दसां की सगाई।
मेरी सांझी के औरे धोरै फूल रही कव्वाई
भान मैं तन्नै बूझूं संझा कैं तेरे भाई
मेरे पांच पचास भतीजे नौ दस भाई
भान कैयां का ब्याह रचाया कितने की सगाई
पांचा का तो ब्याह रचाया दसां की सगाई।