मैं कभी सोया नहीं
चाँद-तारों की क़सम
नींद आती भी नहीं
याद जाती भी नहीं
रात भी साथ कभी
मेरा दे पाती नहीं
गीत तक गा न सकूँ
जी को बहला न सकूँ
मैं कभी रोया नहीं
ग़म के मारों की क़सम
बे सहारों की क़सम
मैं कभी सोया नहीं....
मैंने सब ठौर न पी
आलमे दौर न पी
आखि़री बार जो पी
आज तक और न पी
रिन्द कहला न सकूँ
होठ नहला न सकूँ
मुँह तलक धोया नहीं
वादाख़्वारों की क़सम
गुनहागारों की क़सम
मैं कभी सोया नहीं...
तुम हो निर्मोही बड़े
परवतों जैसे कड़े
प्यार की कौन कहे
लाले दर्शन के पड़े
पास तक आ न सकूँ
तुमको बुलवा न सकूँ
कोई पल खोया नहीं
इंतज़ारों की क़सम
सौ बहारों की क़सम
मैं कभी सोया नहीं...