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मैं हवा को मुंजमिद कर दूँ तो कैसे साँस लूँ / रफ़ीक़ संदेलवी

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मैं हवा को मुंजमिद कर दूँ तो कैसे साँस लूँा
रेत पर गिर जाऊँ और फिर उखड़े उखड़े साँस लूँ

कब तलक रोके रक्खूँ मैं पानियों की तह में साँस
क्यूँ न इक दिन सतह-ए-दरिया से निकल के साँस लूँ

क़िला-ए-कोह-सार पर मैं रख तो दूँ ज़र्रीं-चराग़
लेकिन इतनी शर्त है कि उस के बदले साँस लूँ

ख़्वाब के मतरूक-गुम्बद से निकल कर एक दिन
अपनी आँखें खोल दूँ और लम्बे लम्बे साँस लूँ