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मौक़ा / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध

उठाओ कलम बनाओ आकार
आँको मटमैला आकाश
बूढ़ा बरगद हरा पीला उदास

खिड़की से सिर्फ़ इतना दिखता है
आँको फिर जो सुनता है
गीतों की धुन बच्चों की उछलकूद
बढ़ई का आरा गाड़ियों की फूँक

जब सब बन जाए
फिर बनाना तस्वीर समय की
चोरी की डाकों की हत्या बलात्कारों की
मरते हुए सपने छिनते अधिकारों की
अभी मौक़ा है।