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यह ज़्यादा बहुत ज़्यादा है / कुमार अंबुज

Kavita Kosh से
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कुछ लोगों के पास हर चीज़ ज़रूरत से बहुत ज़्यादा है
वे लोग ही जगह-जगह दिखते हैं बार-बार
उनमें बार-बार दिखने की सामर्थ्य ज़्यादा है

वे लोग दिन-रात बने रहते हैं अख़बारों में,
टेलिविजन में, हमारी बातचीत में, सरकारी चिन्ताओं में
अनेक रहने लगे हैं पाठ्य-पुस्तकों में और विद्यार्थियों की इच्छाओं में

घर से बाहर निकलने पर भी वे दिखते हैं
चौराहों पर, अस्पतालों में, रेस्तराँ में,
और सुलभ कॉम्पलेक्स के पोस्टरों में भी
सार्वजनिक जगहें अब उनकी हैं
पार्क में उनके क्लब की मीटिंग चलती है
सड़कों पर गड़ जाते हैं उनके तम्बू
बचे हुए पेड़ों की छाया उनकी है
सूखती नदियों का पानी उनका
बच्चों के खिलौनों पर उन्हीं की तसवीरें
सस्ती से सस्ती टी-शर्ट पर भी लिखा है उनका नाम
हर विज्ञापन में उनके परफ़्यूम की ख़ुशबू

ये वे ही हैं जिनके पास सब कुछ ज़रूरत से बहुत ज़्यादा है

कपड़े ज़्यादा हैं, गहने और क्रॉकरी ज़्यादा,
घड़ियों-चश्मों की भरमार, जूतों की अलग अलमारियाँ,
अण्डरवियर्स और एअर कण्डीशनर्स ज़्यादा हैं
बँगले-मकान, ज़मीनें, कार-मोटर, फ़र्नीचर ज़्यादा,
शेयर्स, कम्पनियाँ, शो-रूम्स, बैंक बैलेंस ज़्यादा,
नगदी ज़्यादा, एलेडी, कम्प्यूटर, मोबाइल ज़्यादा,

मुश्किल यह नहीं कि बहुत ज़्यादा लगनेवाला यह विवरण ज़्यादा है
मुश्किल यह है कि उनका यह बहुत ज़्यादा, कानून के मुताबिक है
मुश्किल यह है कि यह नियमों के अनुसार है और बहुत ज़्यादा है ।