Last modified on 23 जनवरी 2017, at 12:57

रूठ कर जिससे कदम ने यात्राएँ कीं / प्रमोद तिवारी

घूम फिर कर लौट आये
हम उसी के पास
रूठ कर जिससे
कदम ने यात्राएं कीं

पांव नन्हें प्यार के
आक्रोश में बहके
हम बने भी फूल
तो किस गांव में
महके
था नहीं कोई जहां
लो फिर वहीं आये
व्यर्थ ही जाती रहीं
जो प्रार्थनाएं कीं

वह नदी जिसमें सदा तैरा
सदा डूबा
घाट जिस पर बैठ कर
ऊबा, बहुत ऊबा
मिल गये हैं
पर न वह
ऊबन
न वह डूबन
सोचता हूं ठीक थीं
जो यात्राएं कीं