रूप की राह पर जब-जब भी चले बहक,
प्रीत की छाँह में भी दर्द कई दहक गए,
उन परिंदों की मगर याद बहुत आती है-
जो मेरे बाग में दो पल के लिए चहक गए।
रूप की राह पर जब-जब भी चले बहक,
प्रीत की छाँह में भी दर्द कई दहक गए,
उन परिंदों की मगर याद बहुत आती है-
जो मेरे बाग में दो पल के लिए चहक गए।