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लड़कियाँ / संजीव सूरी
Kavita Kosh से
लड़कियाँ
बड़ा अच्छा लगता है
जब लदअकियाँ स्वप्न देखती हैं
उनके ख़्वाब होते हैं उन्हीं की तरह
रेशमी, मुलायम और महीन.
स्वप्न देखती लड़कियों के पुरख़ुलूस चेहरों
पर हो जाती है मुनक्कश सतरंगी गुलकारी.
उड़ते हैं बादलों के फाहे
होती है नदियों की कल-कल
झरनों की झर-झर
कलियों की चटकन
झड़ते हैं हरसिंगार के फूल
झांझर झनकती है
कंगन खनकते हैं उनके सपनों में.
अपनी आँखों में ख़ूबसूरत ख़्वाब बुनती
लड़कियाँ सचमुच ख़ूबसूरत लगती हैं
लगती हैं एक गदराती कविता की तरह.