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लहू की मय बनाई, दिल का पैमाना बना डाला / 'हफ़ीज़' बनारसी
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लहू की मय बनाई, दिल का पैमाना बना डाला
जिगर दारों ने मक़तल को भी मयख़ाना बना डाला
हमारे जज़्ब-ए-तामीर की कुछ दाद दो यारो
कि हमने बिजलियों को शम्म-ए काशाना बना डाला
सितम ढ़ाते हो लेकिन लुत्फ़ का एहसास होता है
इसी अंदाज़ ने दुनिया को दीवाना बना डाला
भरी महफ़िल में हम ने बात कर ली थी उन आँखों से
बस इतनी बात का यारों ने अफसाना बना डाला
मेरे ज़ौक़े-परस्तिश की करिश्मा साज़ियाँ देखो
कभी काबा, कभी काबा को बुतखाना बना डाला
शिकायत बिजलियों से है न शिकवा बादे–सरसर से
चमन को खुद चमन वालों ने वीराना बना डाला
चलो अच्छा हुआ दुनिया 'हफ़ीज़' अब दूर है हम से
मुहब्बत ने हमें दुनिया से बेगाना बना डाला