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वक्त-१ /गुलज़ार
Kavita Kosh से
मैं उड़ते हुए पंछियों को डराता हुआ
कुचलता हुआ घास की कलगियाँ
गिराता हुआ गर्दनें इन दरख्तों की,छुपता हुआ
जिनके पीछे से
निकला चला जा रहा था वह सूरज
तआकुब में था उसके मैं
गिरफ्तार करने गया था उसे
जो ले के मेरी उम्र का एक दिन भागता जा रहा था