भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वसंत / आलोक श्रीवास्तव-२
Kavita Kosh से
एक कोयल गाती है
टीस भरा एक गीत
फिर
दूर अमराईयों में कहीं
उड़ कर खो जाती है
मैं विह्वल हो कर खोजता हूँ
उस कोयल को
पूछता हूं वृक्षों से
शाखों से
पर
कोयल नहीं मिलती फिर कहीं
कोयल बार बार आती है
गाने वही गीत
कोयल
हर बार
उड़ कर खो जाती है …