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|रचनाकार=एहतराम इस्लाम
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<poem>

क्या फ़िक्र की अंधियारा अजय भी तो नहीं है
फिर सूर्य के उगने का समय भी तो नहीं है

संघर्ष बिना प्राप्त सफलता पे न इतराओ
यारी , ये विजय कोई विजय भी तो नहीं है

मैं अपना अंह तोड़ के रख दूं प तुम्हारा
हो जाएगा मन साफ़ ये तय भी तो नहीं है

वैभिन्न्य दिशाओं का भला कैसे मिटेगा
संभाव्य विचारों का विलय भी तो नहीं है

क्यों पाप छिपा लेने का अपराध करूँ मैं
मुझको किसी भगवान का भय भी तो नहीं है
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