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10:00, 13 जून 2011 {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }}
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१- अपने घर की गली में
खेलते हुए हमारा बचपन
सुरक्षित तो था,
लेकिन आज वह गली भी
अपरिचित,दहशतभरी सी लगती है
कौन जाने? कब किसी की
लाश मिल जाए?
२- कभी अँधेरी गलियों से,
गुजरते हुए भय नहीं लगता था
किन्तु आज
रोशनी से नहाई
सड़कों से गुजरने में भी,
दहशत होती है।
३- एक समय था,जब
घर,खेत, पनघट
और गली में,
बनिताएँ सुरक्षित तो थीं,
किन्तु आज?
घर की पक्की चारदीवारी में भी
वे सुरक्षित कहाँ हैं?
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