भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: <poem> टि‍ड्डी दल सा घूम रहा मानव यहाँ शाम-सहर। आतंकी साये में पीता हा…
<poem>
टि‍ड्डी दल सा घूम रहा मानव यहाँ शाम-सहर।
आतंकी साये में पीता हालाहल यह शहर।

ढूँढ़ रहा है वो कोना जहाँ
कुछ तो हो एकांत
है उधेड़बुन में हर कोई
पग-पग पर है अशांत
सड़क और फुटपाथ सदा
सहते अति‍क्रम का बोझ
बि‍जली के तारों के झूले
करते तांडव रोज
संजाल बना जंजाल नगर का
कोलाहल यह शहर।

दि‍नकर ने चेहरे की रौनक
दौड़धूप ने अपनापन
लूटा है सबने मि‍लकर
मि‍ट्टी के माधो का धन
पर्णकुटी से गगनचुंबी का
अथक यात्रा सम्‍मोहन
पाँच सि‍तारा चकाचौंध ने
झौंक दि‍या सब मय धड़कन
हृदयहीन एकाकी का है
राजमहल यह शहर।
</poem>
Mover, Reupload, Uploader
119
edits