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कुमार के गुण गा रही हैं । बड़े सुन्दर कण्ठ से अत्यन्त मधुर लय में श्रीनन्दनन्दन के
प्रति प्रेमपूर्ण चित्त लगाये हुए गा रही हैं । उनके शरीर पर नीली साड़ी ऐसी लगती
है मानो पानी भरे मेघ हों, । हों। बिजली के समान दोनों भुजाओं को वे हिला रही हैं ।
उनके चंद्रमुख पर सुन्दर अलकें ऐसी लटकी हैं मानो सर्पिणियाँ अमृतसर की चोरी कर रही
हों । दही मथते समय (मथानी का) एक शब्द हो रहा है और उससे मिला करधनी का
शब्द सुनती हुई वे अपने कानों को आनन्द दे रही हैं (उस शब्द में स्वर मिलाकर गा रही
हैं)। सूरदास जी कहते है कि श्यामसुन्दर उनका अञ्चल पकड़कर खड़े हैं, मानो कामदेव
को कसौटी पर कसकर कस कर दिखला रहे हैं । (कामदेव क्या इतना सुन्दर है? यह अपनी शोभा से
सूचित करते हुए काम के सौन्दर्य की तुच्छता स्पष्ट कर रहे हैं ।)