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सूर स्याम-सुंदरता निरखत, मुनि-जन कौ मन मोहै ॥<br><br>
भावार्थ :-- सुन्दरता तो मेरे श्यामपर श्याम पर ही शोभित होती (फबती) है । उनके सुन्दरमुखपर सुन्दर मुख पर बार-बार बलिहारी जाऊँ; जिसके साथ उसकी (उस मुखकीमुख की) उपमा दी जा सके ,ऐसा है ही कौन? इस सौन्दर्यकी सौन्दर्य की तुलना में रखनेके रखने के लिये कवि क्यों व्यर्थ इधर-उधर टटोलता है? मोहनके मोहन के अंग-प्रत्यंगकी प्रत्यंग की छटा देखकर करोड़ों कामदेवोंका कामदेवों का मन मोहित हो जाता है ।(लगता है कि) ब्रह्माने ब्रह्मा ने अनेकों चन्द्रोंको चन्द्रों को निचोड़कर मोहन का मुख बनाया है, अपने तिरछे नेत्रोंसे नेत्रों से यह (श्याम) देख रहा है । सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि श्यामसुन्दरकी सुन्दरताका श्यामसुन्दर की सुन्दरता का दर्शन करते ही मुनिजनोंका मुनिजनों का मन भी मोहित हो जाता है ।