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ठोकरें / कविता वाचक्नवी

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पाठ व वर्तनी सुधार
हर नदी के
गर्भ मेंसे
कैसा तराशा
रूप लेकर
हथोड़ों, दूमटों ने
तोड़कर या फोड़कर
आडा़ आड़ा हमें तिरछा
किया है।
</poem>
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