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Kavita Kosh से
कि पिंजड़े के बाहर
धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है,
यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,
पर पानी के लिए भटकना है,
बाहर दाने का टोटा है,
बाहर बहेलिए का डर है,
फिर भी चिडि़या
मुक्ति का गाना गाएगी,