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जमीन हमरी लै लेउ / उमेश चौहान

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लै लेउ!
अब जमीन हमरी लै लेउ!
लै लेउ यह जमीन सारी,
हम ते अब किसानी कै पहिचान सारी लै लेउ!
 
</Poem>
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