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|संग्रह=लीलटांस / कन्हैया लाल सेठिया
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<Poem>
एक बगत
अलूणुं ही सही
जणां बापर ज्यासी
खुला पईसा।
रिपियो
फेर क्यां रो फिकर
खरच रा भाग मोटा !
</Poem>