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09:57, 26 फ़रवरी 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=धीरेन्द्र अस्थाना
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{{KKCatKavita}}
<poem>आज इत्तिफाक से मिल गये,
हम उसी मोड़ पर !
खायीं थीं कसमे न मिलेंगे,
अब किसी मोड़ पर !!
फिर से दिल पुकार उठा,
शिकवे-गिले होने लगे !
एक-दूजे के जख्मों को,
चरों नयन भिगोने लगे !!
थी शिकायत किस बात पर,
चले गये छोड़ कर..........!
आज इत्तिफाक से मिल गये,
हम उसी मोड़ पर !
न वादों का कोई गिला था,
न जंजीरें थीं कसमों की !
रूहों के मिलन में कहाँ थी,
रुकावटें कोई जिस्मों की !!
फिर भी रास्ते बदल लिए
खुद के दिल तोड़ कर..........!
आज इत्तिफाक से मिल गये,
हम उसी मोड़ पर!
खायीं थीं कसमे न मिलेंगे,
अब किसी मोड़ पर !!
</poem>