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10:04, 26 फ़रवरी 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=धीरेन्द्र अस्थाना
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<poem>महफ़िल में आज उनकी,
कुछ यूँ अंजाम होना है !
जैसे कत्ल मेरा सर-ए-आम होना है!
महफ़िल-ए-रौनक में बस
परवाने को बदनाम होना है !
महफ़िल में आज उनकी...!
क़त्ल और कातिल दोनों में
मेरा ही एक नाम होना है !
महफ़िल में आज उनकी...!
अदाएं ही कुछ ऐसी हैं, यार की,
यही हश्र-ए- अंजाम होना है !
महफ़िल में आज उनकी...!
</poem>